Wednesday, 25 March 2015

हिन्दी के शब्दों से उर्दू अमीर बनती है, उर्दू के शब्दों से हिन्दी आगे बढ़ती है: उर्दू राज्य की दूसरी राजभाषा है, इसमें ताकत है:- मुख्यमंत्री

पटना, 25 मार्च 2015:- हिन्दी के शब्दों से उर्दू अमीर बनती है, उर्दू के शब्दों से हिन्दी आगे बढ़ती है। उर्दू राज्य की दूसरी राजभाषा है, इसकी ताकत का एहसास है। हिन्दी, उर्दू को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा बोली जाती है। उर्दू शब्द का प्रयोग करते हैं तो सब समझ जाते हैं। उर्दू, हिन्दी फले-फुले, दोनों मिलकर आगे बढ़े। हिन्दी, उर्दू ने मिलकर देश को आजाद कराया। उर्दू के विकास के लिये जो कुछ भी बन पड़ेगा, करेंगे। अपने फर्ज का निर्बाह करेंगे। आज शाम मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार श्रीकृष्ण मेमोरियल हाॅल में दो दिवसीय जश्न-ए-उर्दू का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित कर कर रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उर्दू हमारी दूसरी राजभाषा है इसलिये उर्दू जिन परिवारों में परंपरागत रूप से पढ़ी, लिखी एवं बोली जाती है, उसे वहाॅ तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिये। उर्दू राज्य की दूसरी राजभाषा है। कोशिश होनी चाहिये कि हर कोई जो उर्दू जानना एवं सीखना चाहे तो उसे पढ़ाने की व्यवस्था होनी चाहिये। उर्दू शब्द का प्रयोग करते हैं तो सब समझ जाते हैं, उर्दू भाषा में मिठास है। उर्दू और हिन्दी दोनों बहनें हैं, दोनों में कोई विवाद नहीं है। दोनों को मिलाकर न बोलें तो जानदार तरीके से नहीं बोल सकते हैं। उर्दू भाषा और शायरी में दम होता है। काश हमें भी उर्दू भाषा की इतनी जानकारी होती कि हम भी उर्दू भाषा में अपनी बातों को मजबूती से रख पाते, इसका मलाल है। उर्दू का जश्न मनाइये, आप सबको जश्न-ए-उर्दू मुबारक हो।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उर्दू के विकास के लिये उनकी सरकार तत्पर है और हमने तय कर दिया था कि उर्दू शिक्षकों के रिक्त पदों को भरा जाय। उर्दू अनुवादकों के खाली रिक्त पदों को भरा जाय। मुझे बताया गया है कि उर्दू अनुवादक के तीन सौ खाली पदों को अवर सेवा आयोग में भरने के लिये अधियाचना भेजी जा चुकी है। नियुक्ति की कार्रवाई भी आगे बढ़ गयी है। बी0ए0 स्टैंडर्ड की परीक्षा हो चुकी है, आई0ए0 स्टैंडर्ड की होने वाली है। हमने निर्देश दिया है कि जो पद स्वीकृत था, पहले उसको भर दिया जाय। मुख्यमंत्री ने कहा कि उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति के लिये पैमाना तय कर दिया था। क्या काबिलियत एवं योग्यता होगी, इसे तय करना पड़ता है। नियुक्ति में देर हो रही है, इसका कारण पैमाना के अनुसार अभ्यर्थी पूरी संख्या में नहीं मिल पा रहे हैं, जिस कारण पैमाना में परिवर्तन करना पड़ा और अर्हता को कम करना पड़ा। यह साबित करता है कि लोगों के मन में बैठ गया कि उर्दू पढ़ने से लाभ नहीं है इसलिये उर्दू पढ़ना बंद कर दिया या कम कर दिया। उर्दू पढ़ना चाहिये। अनुमण्डल, जिला एवं राज्य स्तर पर उर्दू जानकारों की जरूरत होगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार के कार्यालयों में उर्दू लिखे आवेदनों को लिये जायेंगे। उर्दू में लिखे दस्तावेजों का जवाब जितना संभव हो सके, उर्दू में दिया जाय। निबंधन कार्यालय में उर्दू में दस्तावेज स्वीकार होने चाहिये। यदि थानों में उर्दू में शिकायत की जाय तो एफ0आई0आर0 उर्दू में दर्ज होने चाहिये। पहले से हमने सब कार्रवाई प्रारंभ प्रारंभ कर दी है। राजभाषा विभाग में उर्दू निदेशालय बनाया, निदेशक उर्दू को भी विभागाध्यक्ष का दर्जा दिया। उर्दू के विकास एवं संवर्द्धन के लिये लगातार हमारी सरकार प्रयत्नशील है। इतना से संतोष नहीं करेंगे।
समारोह की अध्यक्षता अमिर-ए-शरीयत हजरत मौलाना निजामुद्दीन ने किया और कहा कि किसी जुबान को जिन्दा रखने के लिये इसे तालिमी अदारों से जोड़कर उसे मुनासिब मुकाम दिया जाय। छोटे बच्चों से बड़े बच्चों तक को उर्दू से नहीं जोड़ा जायेगा, तब तक इसके दूसरे जुबान का दर्जा दिये जाने का लाभ नहीं मिलेगा। उर्दू साहित्य, साहित्यकार, कवियों एवं उर्दू पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। उर्दू को प्यार करने वाले खुद उर्दू नहीं पढ़ेंगे तो उर्दू का विकास कैसे होगा। उर्दू प्रेमी इस पर ध्यान दें और अपने बच्चों को उर्दू पढ़ायें। उर्दू जिन्दा है और जिन्दा रहेगी।
डाॅ0 अख्तरूल वासे ने जश्न-ए-उर्दू के आयोजन के लिये मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को मुबारकवाद दिया और कहा कि तीस साल पहले उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा मिला था। इसके लिये उन्होंने स्व0 गुलाम सरवर, शाह मोहम्मद मुस्ताक, हारून रसीद, मोइन अंसारी इत्यादि उर्दू आन्दोलन के नेताओं को याद किया और उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि बिहार के लिये जो मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने नजरिया पेश किया है, जिसकी वजह से लोगों की उम्मीदें उनसे जुड़ गयी है। उन्होंने उर्दू के विकास के लिये उर्दू के इस्तेमाल को जमीनी स्तर पर दिखाये जाने की आवश्यकता बतायी और कहा कि इससे संवाद में बाधा की समस्या खत्म होगी। उन्होंने कहा कि उर्दू से मुसलमानों को जोड़ना उचित नहीं है। उर्दू का रिश्ता गैर मुस्लिमों से ज्यादा है। जुबानों का रिश्ता मजहब से नहीं जोड़ा जाय। हिन्दी के इतिहास में मुसलमान कवि, शायर, साहित्यकारों को भुलाया नहीं जा सकता।
इस अवसर पर सज्जादानशीं मितनघाट प्रो0 मौलाना सैयद शमीम मोनमी ने भी अपने विचारों को रखा और कहा कि उर्दू के माध्यम से उर्दू दां ने दुनिया को जाना और पहचाना। बिहार में सबसे ज्यादा उर्दू पढ़ी, बोली एवं लिखी जाती है। उर्दू पत्र-पत्रिका का सबसे बड़ा बाजार बिहार है। उन्होंने मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में उर्दू के विकास के लिये किये जा रहे कार्यों की भी चर्चा की।
इस अवसर पर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री श्री नौशाद आलम, पर्यटन मंत्री श्री जावेद इकबाल अंसारी, खाद्य आपूर्ति मंत्री श्री श्याम रजक, उप सभापति बिहार विधान परिषद श्री सलिम परवेज, प्रो0 अब्ुदल मन्नान तरजीह, अदारे शरिया के नाजिम हाजी सनाउल्लाह, पूर्व सुन्नी वक्फ बोर्ड अध्यक्ष श्री मोहम्मद इरशादुल्लाह, सम्पादक कौमी तंजिम श्री अशरफ फरीद, विधायक डाॅ0 इजहार अहमद, विधायक श्री सरफराज आलम, उपाध्यक्ष जमायत-ए-उलमा श्री हुस्न अहमद कादरी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री डी0एस0 गंगवार, प्रधान सचिव सामान्य प्रशासन श्री आमिर सुबहानी सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। स्वागत भाषण प्रधान सचिव मंत्रिमण्डल श्री बी0 प्रधान ने किया तथा मुख्यमंत्री एवं अन्य विशिष्ट अतिथियों को अंगवस्त्र एवं पुष्प-गुच्छ भेंटकर सम्मानित किया।
इस अवसर पर अखिल भारतीय मुशायरा का भी आयोजन हुआ, जिसमें देश के नामचीन उर्दू शायर नदा फाजली, मुनव्वर राणा, वसिम बै्रलवी, सुलतान अख्तर, अना देहलवी, सबिना अदीब सहित अन्य नामचीन कवियों ने अपनी ताजा गजलें सुनायी। श्रोताओं ने कवियों को ताली की गड़गड़ाहट से सराहा।


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