Monday, 26 January 2015

खेती में जब तक किसानों की स्थिति ठीक नहीं होगी, तब तक मजदूरों की स्थिति ठीक नहीं होगी:- मुख्यमंत्री

पटना, 25 जनवरी 2015:- खेती में जब तक किसानों की स्थिति ठीक नहीं होगी, तब तक मजदूरों की स्थिति ठीक नहीं होगी। कृषि को लाभप्रद बनाये जाने के लिये राज्य सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। कृषि रोडमैप के माध्यम से कृषि क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिये कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है। पिछले छह वर्षों में राज्य में एक नये कृषि विश्वविद्यालय, चार नये कृषि महाविद्यालय तथा एक नये उद्यान महाविद्यालय की स्थापना की गयी है। कृषि क्षेत्र में विज्ञान के सतत् प्रयोग से ही किसानों की हालत में सुधार किया जा सकता है। देश में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा में विज्ञान के प्रयोग की प्रथम शुरूआत 1905 में पूसा से शुरू हुयी थी। 1934 के विनाशकारी भूकम्प के बाद सन् 1936 में कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली चला गया, फिर भी इस संस्थान ने पूसा से अपने लगाव को कायम रखा। पुनः आज भारत सरकार इस संस्थान को अपना रही है, यह एक महज संयोग नहीं हो सकता बल्कि पूरे देश के खाद्य सुरक्षा के लिये बिहार के किसानों की महती भूमिका के लिये आवश्यक है। बिहार को दूसरे हरित क्रांति की धूरी के रूप में विकसित करने के लिये राज्य सरकार प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री श्री जीतन राम माॅझी आज मुख्यमंत्री सचिवालय के संवाद सभाकक्ष में राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय का राजेन्द्र केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय में सम्परिवर्तन के लिये समझौता ज्ञापन हस्ताक्षर समारोह का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित कर कर रहे थे।
मुख्यमंत्री श्री जीतन राम माॅझी एवं केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री राधामोहन सिंह तथा कृषि मंत्री बिहार श्री नरेन्द्र सिंह की उपस्थिति में कृषि उत्पादन आयुक्त श्री विजय प्रकाश एवं महानिदेशक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान डाॅ0 अध्यपन ने समझौता ज्ञापन पत्र पर हस्ताक्षर कर इसका आदान-प्रदान कर किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार इसके लिये वर्ष 2008 से भारत सरकार से अनुरोध कर रही थी, इसी कड़ी में आज का दिन बिहार और विश्वविद्यालय के इतिहास में मील के पत्थर के रूप में जाना जायेगा। उन्होंने आशा व्यक्त किया कि भारत सरकार शीघ्र ही इस विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में अंगीकार करेगी। उन्होंने कहा कि खेती महंगी होती जा रही है, इसका उपाय वैज्ञानिकों को करना होगा। हमने जैविक खाद, हरे खाद पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाली पीढ़ी हम सब पर उंगली उठायेगी। बढ़ती जनसंख्या के भार को सहन करने तथा बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिये हमें कृषि अनुसंधान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि आज हम जो कुछ भी इस्तेमाल कर रहे हैं, वह कहीं न कहीं प्रदूषित हो रही है। परंपरागत कृषि पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार का संकल्प मिट रहा है, जिस कारण जमीन का स्वरूप भी बदल रहा है। 20 प्रतिशत से अधिक लोग किसान कहलाने के रूप में नहीं हैं। अधिकांश लोगों के पास एक, दो, पाॅच एकड़ जमीन रह गये हैं, वे मजदूर के रूप में कृषि में आ गये हैं। कृषि ऐसी विधा है, जिसके माध्यम से उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है, हरित क्रांति लायी जा सकती है तथा लोगों की आय में वृद्धि की जा सकती है। बढती जनसंख्या के लिए भोजन की व्यवस्था की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कृषि का बजट 2005-06 में एक सौ करोड़ रूपये का था, जो 2014-15 में बढ़कर 2700 करोड़ रूपये का हो गया है। कृषि रोडमैप पर डेढ़ लाख करोड़ रूपये लगभग खर्च करने की योजना है। वर्ष 2022 तक के लिये कृषि रोडमैप बनाया है। इस साल 126 लाख टन धान के उत्पादन का अनुमान है। उत्कृष्ट उत्पादन के लिये राज्य को दो बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिल चुका है। राज्य सरकार कृषि संस्थानों के निर्माण पर दो हजार करोड़ रूपये खर्च कर रही है। कृषि स्नातकों के लिये रोजगार के अवसर बढ़ाये जा रहे हैं तथा वर्ष 1989-90 के बाद पहली बार 417 कृषि पदाधिकारी की बहाली की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि समेकित कृषि प्रणाली अनुसंधान केन्द्र, पिपराकोठी को 25 एकड़, इन्स्टीच्यूट आॅफ शुगर केन माधोपुर, पश्चिमी चम्पारण को 77 एकड़, केला अनुसंधान संस्थान गोरौल वैशाली को 25 एकड़, कृषि विज्ञान केन्द्र खिजिरसराय गया, सुखेत मधुबनी, लादा समस्तीपुर, तुर्की मुजफ्फरपुर, परसौनी पूर्वी चम्पारण, नरकटियागंज, पश्चिमी चम्पारण को 25- 25 एकड़ भूमि दी गयी है।
मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय कृषि मंत्री से माॅग की कि सारण प्रमण्डल में कृषि इंजीनियरिंग महाविद्यालय की स्थापना केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अन्तर्गत करायी जाय। 15 प्रखण्डों से अधिक वाले अवशेष ग्यारह जिलों में भी कृषि विज्ञान केन्द्र खोले जायें, राज्य सरकार इसके लिये जमीन सुलभ करायेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि नेशनल डेयरी रिसर्च इन्स्टीच्यूट की स्थापना तथा फिसरिज रिसर्च एवं टेªनिंग सेन्टर हेतु भी राज्य सरकार भूमि सुलभ करायेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के बनने के बाद बिहार के किसानों की अपेक्षा बढ़ जायेगी। संस्थान को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अनुभव का लाभ मिलेगा। कृषि के सामने अत्यधिक चुनौतियाॅ हैं। छोटे-छोटे किसानों के लिये तकनिक विकसित करने की आवश्यकता है। मौसम में लगातार बदलाव आ रहा है, इससे भी खेती प्रभावित हेाती है। उम्मीद है कि केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के माध्यम से अत्याधुनिक तकनिक का लाभ बिहार के किसानों को मिलेगा। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि 27 हजार करोड़ रूपये भारत सरकार से राज्य सरकार को आना था, मगर मात्र 14 हजार करोड़ रूपये आये हैं। तेरह हजार करोड़ रूपये आना बाकी है। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा एन0एच0 सड़कों के रख-रखाव पर हुये खर्च एक हजार करोड़ रूपये को दिलाये जाने का भी अनुरोध किया। उन्होंने नालंदा को वल्र्ड हेरिटेज में शामिल करने के लिये यूनेस्को को प्रस्ताव भेजने के लिये केन्द्र सरकार के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने आशा व्यक्त किया कि केन्द्र सरकार बिहार को आवश्यक मदद करेगी।
केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री राधामोहन सिंह ने समारोह को संबोधित करते हुये कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति तक देश में सर्वाधिक कृषि उत्पादकता बिहार में थी। बिहार में कृषि शिक्षा को बढ़ाने के लिये राज्य में एक पूर्णरूपेण कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की माॅग काफी समय से की जा रही है। वर्तमान राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा को केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय में स्थानांतरित किये जाने का विचार था। 2009 में बिहार सरकार द्वारा इस प्रस्ताव की पहल की गयी तथा बिहार में केन्द्रीय विश्वविद्यालय के इस प्रस्ताव पर योजना आयोग द्वारा अपनी सैद्धांतिक सहमति दी गयी। राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय के तहत पाॅच महाविद्यालय, सात अनुसंधान संस्थान, ग्यारह कृषि विज्ञान केन्द्र कार्यरत हैं। प्रस्तावित केन्द्रीय विश्वविद्यालय एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर का क्षेत्राधिकार सम्पूर्ण बिहार होगा। 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के लिये कुल चार सौ करोड़ रूपये का प्रावधान किये जाने का प्रस्ताव किया गया है।
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि बिहार में पूर्णरूपेण केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु त्वरित कार्रवाई को सुनिश्चित करने के लिये कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संबंधित अधिकारियों के साथ केन्द्रीय कृषि मंत्री द्वारा समझौता ज्ञापन पर औपचारिक हस्ताक्षर करने के लिये आज यह बैठक मुख्यमंत्री के साथ पटना में की जा रही है। उन्होंने कहा कि यह पहल निश्चित रूप से बिहार की जनता के लिये वरदान साबित होगी और इससे देश भर में विशेषकर बिहार में समृद्धि आयेगी। बिहार राज्य में प्रोद्यौगिकी एवं मानव संसाधन विकास के लिये एक नये युग का सूत्रपात होगा, जिससे राज्य के सामान्यतः छोटे एवं गरीब किसानों के जीवन में खुशहाली आयेगी।
कृषि मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह ने समारोह को संबोधित करते हुये कहा कि आज का दिन कृषि के लिये ऐतिहासिक दिन है। बिहार में ही कृषि को वैज्ञानिक बनाने की बुनियाद पड़ी थी। बिहार में एक नया कृषि विश्वविद्यालय सबौर में स्थापित किया गया है। कृषि को महत्वपूर्ण रूप में जाना जाता है। राज्य सरकार कृषि पर विशेष ध्यान दे रही है। वर्ष 2017-22 तक का कृषि रोडमैप बना लिया गया है, कृषि कैबिनेट बनाया है। कृषि क्षेत्र में विकास से देश का विकास होगा। उन्होंने केन्द्रीय कृषि मंत्री से अनुरोध किया कि वे कृषि क्षेत्र के लिये अधिक से अधिक धन राज्य को मुहैया करायें। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानों को मजबूत कीजिये। बिहार में लीची एवं मखाना क्षेत्र को बढ़ावा दिलाइये। गन्ना अनुसंधान केन्द्र यहाॅ पर स्थापित हो जाय तो चीनी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हो सकती है। यहाॅ की मिट्टी उवर्रक है। कृषि उत्पादन के प्रोसेसिंग क्षेत्र में उद्योग को यहाॅ लाने में मदद करें, आपके पहल की हम अपेक्षा रखते हैं।
इस अवसर पर कृषि उत्पादन आयुक्त श्री विजय प्रकाश ने स्वागत भाषण किया, जबकि कुलपति राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय श्री आर0के0 मितल ने राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पर आधारित एक वृतचित्र की प्रस्तुती की। इस अवसर पर विकास आयुक्त श्री एस0के0 नेगी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री अमृत लाल मीणा, कृषि निदेशक श्री धर्मेन्द्र सिंह, निदेशक उद्यान श्री अमरेन्द्र सिंह सहित अनेक कृषि वैज्ञानिक उपस्थित थे।


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